Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 104
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन द्रब्य सभावथी, पातम सिद्ध समान । परजाये करी फेरजे, ते सवि कर्म विधान ॥२२२। तेणे कारण अरिहंत का, द्रव्य गुण परजाय । ध्यान करंतां तेहनु, प्रातम निर्मल थाय ॥२२३।। परम गुणी परमातमा, तेहना ध्यान पसाय । भेदभाव दूरे टले, प्रेम कहे त्रिभुवन राय ॥२२४॥ जेह ध्यान अरिहंत को, सोहि प्रातम ध्यान । फेर कछु इण में नहीं, अहिज परम निधान ॥२२॥ प्रेम विचार हिरदे धरो, सम्यग् दृष्टि जेह । सावधान निज़ रूप में, मगन रहे नित्य तेह ॥२२६॥ प्रातम हित साधक पुरुष, सम्यगवत सुजाण । कहा विचार मन में करे, वरणवू सुणो गुण खाण ।२२७/ अह शरीर आश्रित छे, तुम मुज मात ने तात । तेणे कारण तुमकुकहुं, अब निसुणो एक वात ॥२२६॥ अतो दिन शरीर एह, होत तुम्हारा जेह । अब तुम्हारा नाहीं हैं, भली परे जाणो तेह ।।२३०॥ अब अह शरीर का, आयुर्बल थिति जेह । पूरण भई अब नवि रहे, किण विध राखी तेह ।२३१॥ थिति परमाणे ते रहे, अधिक न रहे केणी भात । तो तस ममता छोडवी, ए समजण की बात ॥२३२।। For Private And Personal Use Only

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