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: नव पदों के दोहे :
[यहाँ दिये ये दोहे श्री सिद्धचक्र की आराधना के लिए प्रतिदिन बोले जाते हैं । यहाँ विचारने के लिए उनका अर्थ दिया जाता है । श्रीपालजी के रास में कवि ने ये गाये है । इनमें कथित प्रकार से ध्यान करने से आत्म ऋद्धि की प्राप्ति सरल है |]
अरिहंत पद ध्यातो थको, दव्वह गुण पज्जायरे । भेद छेद करी आतमा, अरिहंतरूपी थायरे । १॥
वीर जिनेश्वर उपदिशे, सांभलजो चित्त लाईरे । प्रतम ध्याने आतमा, ऋद्धि मले सवि आईरे ॥
द्रव्य गुण और पर्याय सहित अरिहंत पदका ध्यान करने से ग्रात्मा भेद को तोड़कर स्वयं अरिहंत रूपी बन जाता है ||
प्रभु महावीर के इस उपदेश को मन में सोचो, सुनो कि आत्मा के ध्यान से सर्वे ऋद्धि (विशेषत: ग्रात्म ऋद्धि ) प्राप्त होती है ।
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