Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 115
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एम जाणी निज रूप में, वरते धरो बहुमान ॥३६७i: एम पानंदमां दरततां, शांत परिणाम संयुक्त । आयु निज पूरण करी, मरण लहे मतिमंत ॥३६८॥ एह समाधि प्रभावथी, इन्द्रादिक को ऋद्धि । उत्तम पदवी ते लहे, सर्व कारज को सिद्ध ।।३६६ ॥ सुर लोके शाश्वत प्रभु, नित्य भक्ति करे तास । कल्याणक जिनराजनां, अोछव करत उल्लास ॥३७१॥ मनुष्य गति उत्तम कुले, जनम लहे भवि तेह । सजम धर्म अंगोकरी, गुरु सेबे धरी नह ।।३७४॥ शुद्ध चरण परिणामथी, अति विशुद्धता थाय । क्षपक श्रेणी आरोही ने, धाती करम खपाय ॥३७५॥ केवल ज्ञान प्रगट भयो, केवल दर्शन भास । एक समय त्रण कालकी, सर्व वस्तु परकास ॥३७६।। सादि अनंत थिति करी, अविचल सूख निरधार । वचन अगोचर अह छे, किणविध लहीए पार? ::३७७।। महिमा मरण समाधिनो, जाणो अति गुणगेह । तिण कारण भवि प्राणिया, उद्यम करोगे तेह ॥३७८।। अल्प मति अनुसारथी, बिन उपयोगे जेह । विरुद्ध भाव लखियो जिके, मिथ्या दुष्कृत तेह ॥३८२॥ भावनगर वासी भला, सेवक श्री भगवंत । भगवान सुत भगवानकु, बहे चरदास प्रणमत ॥३८३॥ [१०२] For Private And Personal Use Only

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