Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एहबा उत्तम गुरु तणो, पुन्यथी जोग जो होय। अंतर खुली एकांतमें, निशल्यभाव होय सोय ॥३४६॥ एहवा उत्तम पुरुष को, जोग कदी नवि होय । तो समकित दृष्टि पुरुष, महा गंभीर ते जोय ॥३४७॥ एहवा उत्तम पुरुष के, आगे अपनी बात । हृदय खोल के कीजिये, भरम सका अवदात्त ॥३४८॥ योग्य जीव उत्तम जिके, भवभीरू महाभाग । अहवो जोग न होय कदा, कहेणे को नहीं लाग॥३४॥ अपना मन में चितवे, दुष्ट करमवश जेह । पाप करम जे थाई गयू,बहविध निदे तेह ।।३५॥ श्री अरिहंत परमातमा, बलौ श्री सिद्ध भगवंत । ज्ञानवंत मुनिराजनी, वली सुर सकिलवंत ॥३५१। इत्यादिक महा पुरुष की, साख करी सुविशाल । वली निज प्रातम साखसु, दुरित सधे असराल |३५२१ मिथ्या दुष्कृत भली परे, दीजे त्रिकरण शुद्ध । एणी विध पवित्र थई पछे, कोजे निर्मल घुद्ध ॥३५३ अवश्य मरण निज मन विषे, भासन हुए जाम । सर्व परिग्रह त्याग के, पाहार चार तजे ताम ॥३५४|| जो कदि निर्णय नदि हवे, मरण तणो मनमाही । तो मर्यादा कीजिये, अल्पकाल की ताही ॥३५॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122