________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रथम देव गुरु धर्म को, करों अति गाढ प्रतात । मित्राइ करो. सुजनकी, धर्मी शुधरो प्रीत ।।३२६।। दान शिथल तप भावना, धर्म ए चार प्रकार । राग धरो मित्य एहशु, करो शक्ति अनुसार ॥३३० सज्जन तथा परजन विषे, भेद विज्ञान जेम होय । अह उपाय करो मदा, शिव सुखदायक सोय ॥३३१॥ जे संसारी प्राणिया, मगन रहे संसार । प्रीत न कीजिये तेह की, ममता दूर निवारं ॥३३२॥ धर्मात्मा पुरुष तणी, सगते बहु गुण थाय । जश कीर्ति वाधे घणी, परिणति सुधरे भाय ॥३३४॥ वली उत्तम पुरुष तणी, संगते लहीए धर्म । धर्म प्राराधी अनुक्रमे, पामीने शिवपुर शमं ॥३३८॥ दया भाव चित्त लाय के में कह्या धर्म विचार । जो तुम हृदयमें धारशो, लेंशो सुख अपार ॥३४१॥ एम सबकु समझाय के, सबसे अलगा होय। अवसर देखी पापणा, चित्तमें चिते सोय ॥३४२।। आयु अल्प निज जाण के, समकित दृष्टिवंत । दान पुण्य करणा जिके, निज हाथे करे संत ॥३४॥ बाह्य अभ्यंतर ग्रंथि जे, तेहथी न्यारा जेह । बहु श्रुत आगम अर्थना, मर्म लहे सहु तेह ॥३४५।।
[EE] .
For Private And Personal Use Only