Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 119
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञान दर्शन सहित मेरी प्रात्मा अकेली है और शाश्वत है । अन्य सब सिर्फ संयोग से उत्पन्न बाह्य भाव हैं (अतः त्याज्य है)। संजोग मूला जीवेण, पत्ता दुक्ख परंपरा । तम्हा संजोग सबंध, सव्वं तिविहेण वोसिरिया।३।। इन स योगों के कारण से हो यह जीव दु:खकी परंपरा को प्राप्त हुआ है । इसलिए इन सर्व सयोगों की तथा सयोग जनित संबधों को मन वचन काया से वोसिराता हूं, छोडता हूं-भूल जाता हूँ ॥३॥ सव्वे जीवा कम्मवस, चउदह राज भमत । ते मे सब खमाविमा, मुज्झवि तेह खमंत ।।४।। सर्व जीव कर्मवश होने से चौदह राजलोक में भटक रहे हैं। उन सब से मैं क्षमा चाहता हूँ, वे भी मुझे क्षमा करें ॥४॥ For Private And Personal Use Only

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