Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेव्यादि चार भावना परहितचिता मैत्री, परदुःख विनाशिनी तथा करुणा। पर सुखतुष्टि दिता, परदोषोपेक्षणमुपेक्षा । षोडशके अन्य जीवों के हित-कल्याणकी भावना हृदयसे रखना मैत्री भाव है। अन्य जीवों के दुःख का अन्त हो, ऐसा दिल का भाव ही करुणा है । अन्य जीवों की सुख समृद्धि अथवा गुण गौरव देख कर दिलका खुश होना मुदिता (प्रमोद) तथा अन्य जीवों के अत्यंत कठोर व कर भाव व दोष देखकर उनकी रागद्वेष रहित उदासीन भाव रखना उपेक्षा है । मैत्री भावनु पवित्र झरण मुझ यामां वह्या करे शुभ थानो या सकल विश्वनुएवी भावना नित्य रहे । गुणथी भरेला गुणीजन देखी हैयु मारु नत्य करे । श्रे संतोना चरणकमलमां मुझ जीवननु अध्य रहे । दीन क्षीण ने धर्म विहोणा देखो दिल मां दर्द रहे। करुणा भीनी आंखोंमाथी अश्रुनो शुभ श्रोत वहे । मार्ग भूलेला जीवन पथिकने मार्ग चींधवा उभो रहूँ। करे उपेक्षा ए मारगनी तोए समता चित्त धरु | [१०] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122