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शुद्ध हमारो रूप है, शोभित सिद्ध समान । केवल लक्ष्मी को धणी, गुण अनंत निधान ॥३.।
पत्नी को समझामा थिति पूरण भई एह की, अब रहणेका नाही । सो क्यु मोह धरो घणो, दुख करना दिल माही ।।३८५॥ मेरा तेरा सबध जे, एता दिनका होय । अधघट को न करी शके, एणिविध जाणो सोय ॥३०॥ तिण कारण लुम कहुं, न धरो इनकी पाश । गरज सरे नहीं ताहरी, इनका होय अब नाश ॥३०८|| एम गाणी ममता तजी, धरम करोघरी नीता जेम प्रातम गुण संपजे, अं उत्तम की रीत ॥३०॥ काल जगत में सह सिर, गाफल रहणा नाहीं । कवहिक तुमकुपण ग्रहै, संशय इनमें नाहीं ॥३१॥ स्त्री भरतार संयोग जे, भव माटक एह आण । चेतन तुज मुज सारीखो, कम विचित्र वखाण ॥१२॥ जो सुज ऊपर राय छे, तो करो धरममें सहाय । इण अवसर तुज उचित है,समो अवरना काज।३१४ फोकट खेद ना कीजिये, कर्म बंध बह थाय । जाणी एम ममता सजी, धर्म करो सुखदाय ।।३१६।।
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