Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेद विज्ञान पुरुष जो, एह शरीर के काज । दूषण कोई सेवे नहीं, अतिचार भी त्याज ॥१५१।। आत्म गुण रक्षण भणी. दृढता धरे अपार । देहादिक मूर्छा तजी, से वे गुद्ध व्यवहार ।। १५२।। संजम गण परभावथी, भावी भाव संजोग । महाविदेह खेत्रां विषे, जन्म होवे शुभ जोग ।।५३॥ जिहां सीमंधर स्वामीजी, प्रादे वीस जिणद । त्रिभुवन नायक सोहता, निरखु तस मुख चंद ।। १५४।। एहवा उत्तम क्षेत्रमा, जो होय माहरो वास । प्रभु चरणकमल विषे, निश दिन करू निवास ||१५६॥ निबिड कर्म महारोग जे, तिनकु फेडणहार । परम रसायन जिन गिरा, पान करूं अति प्यार १६० क्षायक समकित शुद्धता, करवानो प्रारंभ । प्रभु चरण सुपसायथी, सफल होवे सारंभ ।।१६१ ॥ एम अनेक प्रकार के, प्रशस्त भाव सुविचार । करके चित्त प्रसन्नता, आनद लहुं अपार । १६।। ओर अनेक प्रकार के, प्रश्न करूं प्रभुपाय । उत्तर निसुणी तेहना, संशय सवि दूर जाय ॥१६३।। निसंदेह चित्त होय के, तत्त्वातत्त्व स्वरूप । भेद यथार्थ पाय के, प्रगट करूं निज रूप ।।१६४|| [८५] For Private And Personal Use Only

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