Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब थिति एह : शरीरकी, काल पोंचे होय क्षीण । तब भूरे प्रति दुख भरे, करे विलाप एम दीन ॥ ५४ ॥ हा हा पुत्र तु क्या गयो ? मूकी ए सहु साथ | हा हा पति तुम क्या गया ? मुजकु मूकी अनाथ ॥ ५५ ॥ || मोह विकल एम जीवङा, श्रज्ञाने करी ग्रंध । ममता वश गणी माहरा, करे क्लेश ना धंध ॥ ५८ ॥ इग विष शोक संताप करो, अतिशय क्लेश परिणाम । करमबंध बहुविध करे, ना लहे क्षण विशराम ॥ ५६ ॥ ज्ञानवंत उत्तम जना, उनका एह विचार | जगमें कोई किसी का नहीं, संजोगिक सह धार ॥६०॥ भमतां भमतां प्राणिया, करे अनेक संबंध | रागद्वेष परिणति थकी, बहुविध बांधे बंध ॥ ६१ ॥ वेर विरोध बहुविध करे, तिम प्रीत परस्पर होय । संबंधे आवी मले, भव भव के बिच सोय || ६२|| वनके बिच एक तरु विषे, सध्या समय जब होय । दस विधी प्रावी मले, पंखी अनेक ते जोय ॥ ६३ ॥ रात्रे तिहां वासो वसे, सवि पंखी समुदाय | प्रातः काल उडी चले, दशेदिशे तेहु जाय ||६४।। इण विध एह संसार में, सवि कुटुंब परिवार । संबंधे सह प्रावी मले, थिति पाके रहे न केवार ||६५ || [ ७६ ] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122