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तहा जागरिज्ज धम्मजागरिआए। को मम कालो ! किमेस्स उचिधे ।
वह (श्रावक-साधुधर्म परिभावना करनेवाला) सदा धर्म जागरिका करे । किस तरह ? भाव निद्रा का त्याग करके । भाव निद्रा याने अतत्त्वचिंतन, रागद्वेष का खेल, मिथ्यात्व, बाह्यभाव प्रमाद आदि । इसको छोडते हुए सतत धर्म जाग्रति अर्थात् तत्त्व विचारणा-तत्त्व क्या है ? अात्मा क्या है ? मैं कौन है तथा 'स्व' का असली स्वरूप जानने का प्रयत्न करें। मानव जीवन रत्नोपम है, उसमें जो शेष रहा है उसका महामूल्य उपजाने का प्रयत्न, विशिष्ट जीवन में महा उचित की प्राप्ति तथा जडमुखी से प्रात्ममूखी प्रवृत्ति करने के लिए तथा जन्म जरा मृत्यु की जजाल से छूटने के लिए और कर्मव्याधि को मिटाने के लिए धर्म औषधि का सेवन करें।
कैसा समय है ? क्या उचित है ? महा मूल्यवान समय । उसमें उचित कर्तव्य क्या है ? अनन्त शरीर परिवर्तन जो पूर्व में किये हैं, वे पुनः न करना पड़े वैसी स्थिति उत्पन्न करो-ऐसा समय है यही उचित
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