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असारा विसया, निप्रमगमिणो, विरसावसाणा। भोसणोमच्चू, सव्वाभावकारी,अविन्नायागमणो, अणिवारणिज्जो, पुणोपुणोणुबंधी।
विजय प्रसार है। निश्चय ही जानेवाले, नाशवत हैं तथा अन्त में विरस याने कटू विपाकी हैं। विषय जड तथा नाशवत हो न पर भी प्रात्मा को विकृत दुखी व पराधीन करते हैं। अत: वे आत्मा की ऋद्धि के समक्ष तुच्छ हैं। परिणाम में भय कर दुःखदायक हैं।
__ मृत्यु अवश्यभावी तथा भयकर हैं, सर्व वस्तु का अभाव करने वाली हैं। यहां का सब यहीं पडा रह जायगा । वह अचानक ही पाती है। वह अनिवार्य है। तथा उसकी पुन:पुनः प्रावृत्ति होती रहती है। राग द्वेष तथा योगों की प्रवृत्ति हैं, तब तक जन्म भी है और मृत्यु भी, अनेक योनि द सब गति में - बारबार । अतः प्रबल शुभ भाव से अज्ञान व मोह को तोड़ दे, तो यह दुःख सर्वथा मिट जायगा।
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