Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से भोगो । कर्म कटते हैं ।' ऐसा कभी कहीं किसीने समझाया ? क्या उचित है यही । आज संयम का विराग का उपशम का समय है । मायारूपी शल्य को काट कर फेंक दे । निदानरूपी शल्य को तोड कर हटा दे। रस, ऋद्धि तथा शातारूपी गारव पर से नीचे उतर । जैसे शिलाजीत से चिपक कर बंदर वहीं मर जाता है. वैसे इन तीनों से चिपक कर जीव अनेकशः जन्ममरण से दुःखी होता है। देव व चक्री की रस व ऋद्धि के आगे हमें मिला किस गिनती में ? फिर भी उससे प्रेम ? तृप्ति कहां ? संज्ञा, कषाय दुर्ध्यान व विकथा की चार चंडाल चौकड़ी को खतम करने का यही उचित अवसर है । इन से मन बिगडता है, पाप बढता है, भव व संसार की वृद्धि होती हैं । श्रतः रोकने का यह अवसर मिला है । विषयों से विरागी बनकर सर्व विरति प्राप्त करने का उचित समय हैं । अन्यथा क्षपक श्रेणी, सर्वज्ञता व मोक्ष कैसे मिलेंगे ? ऐसे अमृत काल को विषयों की गुलामो से विष काल कर रहा हूँ । अतः जीव जरा सोच ! [ ६६ ] For Private And Personal Use Only

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