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: समाधि विचार :
(प्रात्मा की उन्नति के लिए प्रथम दो सूत्रों की तरह ही यह भी अत्यंत उपयोगी है। इसे बारबार पढ़कर प्रात्मा को उसके शुद्ध स्वरूप से भावित करें।) परमानंद परम प्रभु, प्रणम् पास जिणद; वद् वीर प्रादे सह, चउदी से जिनचंद ।१।। इंद्रभूति प्रादे नमू, गणधर मुनिपरिवार । जिन वाणी हैड़े धरी, गुणवत गुरु नमु सार ।। २।। प्रा ससार असारमां, भमतां काल अनन्त ; असमाधे करी पातमा, किमहि न पाम्यो अंत ।३।। च उगतिमां भमतां थका, दु:ख अन तानत; भोगवियां एणे जीवड़े, ते जाणे भगवत ॥४॥ कोई अपूरव पुण्यथी, पाम्यो नर अवतार; उत्तम कुल उत्पन्न थयो, सामग्री लही सार ।।५।। जिन वाणो श्रवणे सूणी, प्रणमी ते शुभ भाव; तिण थी अशुभ टल्यां घणां, कांइक लही प्रस्ताव ।।६।।
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