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इच्छामि अहमिणं धम्म पडिवज्जित्तए सम्म मणवयणकायजोहि । होउ ममेधे कल्लाणं परमकल्लाणाणं जिणाणमणुभावो।
मैं इस धर्म को प्राप्ति की इच्छा करता है। अब मुझे इस धर्म का पक्षपात है । मन वचन काया के सम्यक योगों से उसका संपूर्ण स्वीकार करता है। मुझे इस धर्म प्राप्ति का कल्याण प्राप्त हो । मेरा तो सामर्थ्य कुछ नहीं है, अत: परम कल्याणकारी जिनेश्वर देवों के परम प्रभाव (प्रसाद, से वह मुझे प्राप्त हो, ऐसी इच्छा करता हूँ। ___ सुप्पणिहाणमेवं चितिजा पुणो पुणो । एअधम्मजुत्ताणमववायकारी सिमा । पहाणं मोहच्छेप्रणमेनं ।
इस तरह खूब एकाग्रता तथा विशुद्धता से बार बार इसका चिंतन करें, मन में उसकी भावना करें। इस धर्म का सेवन करने वाले मुनियों का माज्ञांकित विनयी व सेवक बनू, वैसी तीव्र भावना करें। यह मुनियों को प्राज्ञाकारिता मोह का छेद करनेवाली है.
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