Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे । अज्ञान व मोह से मैं इसे कम कर रहा है या बढ़ा रहा हूँ। अखबार, रेडियो, उनसे बाजार भाव, सिनेमा गीत आदि में मन को डाल कर क्या किया ? कर्म रूपी महान पर्वत जैसे ढेर को तोडने का यही समय मिला है । हे जीव सोच जरा! आहार, निद्रा, भय, परिग्रह नामक चार महा संज्ञा का आत्मा पर जो नशा चढा है, वह उतारने का यही मौका है - खाना, सोना, इकट्ठा करना प्रादि को हटाने वाले गुण तप, शोल, दान आदि की प्रवृत्ति से उन्हें हटा दे, कम कर दें । देव भव या अन्य किसी भव में इनको तोड़ने का समय कहाँ, बद्धि कहाँ ? सग्रहवृत्ति आकाश जितनी अनन्त है। इसे तोडो। पाहार, विषय व परिग्रह की ममता करते यह सोचा कि यह दुश्मन कहां घर में डाल रहा हूँ । धर्म साधना के शरीर को टिकाना है, पर आहार सज्ञा को दबा कर, मार कर । जैसे बिच्छु को डक बचाकर पकडना । को कालः? कि उचि? कैसा काल-वीतराग शासन के नाव में बैठकर भव पार उतरने का । तिर्यच आदि में कितना कष्ट ? 'जो आवे, समता For Private And Personal Use Only

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