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कारुणिक हैं, श्रेष्ठ बोधि (वर बोधि) वाले, स्वय ही सबुद्ध हैं, जड़ चेतन के बोध वाले महा विरागी हैं, वे यह समझाते हैं। यह सोच कर धमस्थान (समकित, देशविरति) के विरुद्ध या प्रतिकूल नहीं, पर विविध प्राचारों में अच्छी तरह शास्त्र नियमानुसार प्रवृत्त हों।
___ इस तरह का विधिपूर्वक धर्म वर्तन ही भाव मगल है । अहिंसा, सत्य आदि उत्तम आचार में सविधि प्रवतन भाव मंगल है । यह अशुभ भावों का नाश करता है, शुभ अध्यवसाय के सुन्दर परिणाम वाला होता है, । अतः यह भाव मगल है। आगम ग्रहण, धर्म मित्र उपासना, लोक विरुद्ध का त्याग, शुद्ध मन वचन, काया की क्रिया आदि न करे तो शुभ अध्यवसाय दुर्लभ हैं। धर्म करे तब भी क्लेश आदि से मन में प्रात रौद्र ध्यान रह सकता है, तो उत्तम आचार से भी हृदय को शांति कैसे मिले ? धर्म व्यवहार में जितनी शुद्धि उतना ही धर्मस्थान ऊंचा। ।
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