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का हृदय श्रार्द्र, नरम, नत्र तथा उदार बन जाता हैं। प्रार्थना पारस हैं, जो जीव को स्वर्ण का तेज अर्पित करती हैं। सच्ची अनुमोदना में विधिपालन शुद्ध अध्यवसाय, सम्यक् क्रिया तथा अखंड निर्दोष प्रवृत्ति होनी चाहिये । सुकृत की सच्ची अनुमोदना भी मिथ्यात्व की मदता बिना नहीं हो सकती ।
रिहतादि का ऐसा प्रभाव हैं कि उनके प्रति सदृभाव से शुभ अध्यवसाय जागकर मिथ्यात्व को मंद कर देते हैं ।
इसी लिए वे अचित्य शक्तिशाली हैं । वे सर्वज्ञ वीतराग तथा कल्याण स्वरूप सर्वं जीवों के परम कल्याण के हेतु भूत हैं । उनके गुणों को पहचानने में मैं मूढ हूँ। अनादि मोह से वासित होनें से हिता हित के भान से रहित हूँ। मैं हिताहित कां जानकार बनने का इच्छुक हूँ । ग्रहितकर मिथ्यात्वादि प्रविरति कषाय व अशुभ योगों से निवृत्त बनू, हितकर ज्ञान दर्शनादि में प्रवृत्त बनू । मोक्ष मार्ग का प्राराधन तथा सर्व जीवों के प्रति श्रौचित्य प्रवृत्ति सहित सुकृत जिनाज्ञा आदि का आराधक वन् । तीन बार का कथन तीनों काल, तीनों करण तथा विविध करने रूप कथन का सूचक है ।
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