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सुकृतकी प्रासेवना अनुमोदना करता हूँ। त्रिकाल अनन्त तीर्थंकरों के सर्व अनुष्ठान (उत्कृष्ट कोटिके सयम, विहार, तप, परिषह व उपसर्ग सहन, ध्यान, उपदेश आदि की, सिद्धोंके सिद्धभाव (अक्षय स्थिति निष्कलक शुद्ध स्वरूप अनन्त ज्ञानादि), सभी त्रिकाल के प्राचार्यो के (पांचों) प्राचार, उयाध्यायों के सूत्र प्रदान की, सर्व साधुनों (साध्वीयों) के साधु क्रिया की (अहिंसा सयमादि, ध्यान, परीषह उपसर्ग आदि में धीरता, विनय भक्ति आदि) की मैं अनुमोदना करता हूँ। ‘करण करावणने अनुमोदन सरिखां फल निपजायोरे।'
अनुमोदना हम बहुत ज्यादा कर सकते हैं, यदि वह भावपूर्ण हृदय से, गद्गद् कंठ व वाणीसे, संभ्रम व बहुमान सहित अनुष्ठान क्रिया आदि जीवन में उतारने के मनोरथ के साथ की जाय तो सचमुच हो लाभप्रद होगी । प्रतः सर्व सुकृतों का बार बार अनुमोदन हमारे जीवन को उज्ज्वल बनाने में तथा गुणबीजाधान में मददकर्ता होगा ।
इसी तरह श्रावकों के वैयावच्च, दान, तप आदि धर्म क्रियाओं की, सर्व देव तथा सर्व जीव जो
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