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प्राणाहि मोहविसपरममंतो, जलं रोसाइजलणस्स, कम्मवाहितिगिच्छासत्थं, कप्पपायवो सिवफलस्स।
जिनाज्ञा मोह विषको उतारने वाला परम मत्र है। इसीलिए इसके ग्राहक, भावक व परतत्र बनें ! आज्ञा से मोह की भयानकता, प्रात्मा की हानि आत्महित साधन के समय की बरबादी श्रादि का पता चलता है। प्राज्ञा तो द्वेष अरति शोक आदि की अग्नि को बुझानेवाला पानी है । इससे हृदयमें उपशम तथा कषायमदता के सून्दर मेघ बरसते हैं। कर्मरूपी अनेक कष्टों को मिटाकर प्राज्ञा मोक्ष फल देने वाला कल्पवृक्ष है । विरति के बाद भी बची वस्तु में रस रह जाने से प्राज्ञा उसे हटा सकेगी। साधक तत्त्वों का अभ्यासी व ज्ञाता बने, तो वह हेयोपादेय का ज्ञान प्राप्त करेगा। सावद्यकार्य प्रात्म हितके घातक ही लगेंगे । पागम व प्राज्ञा कर्म व्याधि दूर करने का चिकित्साशास्त्र है। जीव अनादि काल की उलटी प्रवृत्ति में लगा है, उसे आज्ञा ही मिटा सकती है। जिनाज्ञा कस्तूरीसे प्रात्मा की उलटी प्रवृत्तिरूप बदबू नष्ट हो जाती है ।
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