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प्रसंतावने परिवारस्स, गुणकरे जहासत्ति, अणुकंपापरे निम्ममे भावेणं । एवं खु तप्पालणे वि धम्मो, जह अन्नपालणे त्ति, सत्वे जीवा पुढो पुढो, ममत्त बंधकारणं।
पूर्वकथित गुण तथा सदाचार से समृद्ध अात्मा परिवार को संताप (दुःख) देने वाला नहीं होता। निर तर शुभ भावोंमें पवित्र निर्णय व सुन्दर इच्छाओं वाला होने से स्वार्थी न होकर परमार्थी होगा, अकडू व क्रोधो न होकर मृदु व शांत होगा, तुच्छ विचार या प्रदरदर्शी न होकर दीघदर्शी, गभीर व उदार होगा। परिवार को पीडा न दे, इतना ही नहीं पर उसे संसारका स्वरूप, उसकी स्थिति व जीवकी मोह दशा आदि बताकर धर्ममार्ग में प्रेरित करे । उनके न समझने पर भी उनके प्रति दयालु, शुद्ध करुणा भाव व वात्सल्य वाला हो, अपना उपकार न जताये तथा द्वेष का संग ही न आने दे ।
परिवार के प्रति अनुक पा के साथ ममत्व भाव रहित हो । भवस्थिति, अनित्यता, अनन्त भवों के परिवार आदि के विचार से ममत्व छोड कर दया भावसे मोह रहित उनका पालन करे, तो जैसे
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