Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं न हिसिज्जा भू आणि । न गिहिज्ज प्रदत्त । न निरिक्खिज्ज परदारं । न कुजा अणत्थदंडं । सुहकायजोगे सिमा। तदा लाहोचिअदाणे, लाहोचिन भोगे, लाहोचिन परिवारे, लाहोचिप्रनिहिकरेसिया।। तीसरी कायिक क्रिया-काया से पृथ्वी, पानी प्रादि की हिंसा न करे। जरा भी चोरी न करे। परस्त्री तरफ़ नजर न करे। दुर्ध्यान पाचरण, नाटक देखना, अधिकरण (हिंसक शस्त्र प्रादि) बढाना, मौज शौक आदि अनर्थ दौंड का सेवन न करे। जिनागम कथित शुभ प्रवृत्ति - शील, दान, तप, सामायिक, पौषध, ज्ञान ध्यानमें-काया से लग जावे। प्राय (प्रावक) को योग्य ढंग से लगावे । पूर्व महषियोंने बताया है कि प्राय का पाठवां भाग दान में, आठवा स्वयं के उपयोग में, चौथा परिवार के पोषण में, चौथा पूंजी में और चौथा भाग व्यापार में लगावे । अथवा अन्य विधिवत योग्य व्यवस्था करे । लाभ का उचित भाग दान में, उचित भान भोग में, उचित भाग परिवार के लिए तथा उचित भाग संग्रह करने में लगावे । । For Private And Personal Use Only

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