Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अइदारुणं सरूवेणं, असुहाणुबंधमच्चत्थं । से विज्ज धम्ममित्ते विहाणेणं। - अकल्याण मित्र को छोडकर कल्याण मित्रका विधान पूर्वक संग करें। 'तुम ही कल्याण में सहायक हो,' ऐसे स्वीकार तथा आदर सहित मनमें ऐसे विश्वास सहित उनका स'ग करें। दो पैसे का लाभ करवाने वाले का उपकार मानेगा, पर धर्म के प्रति आकर्षण करने वाले की कोई कीमत नहीं लगती। इसीलिए सत्संग का फल नहीं मिलता। मुनिपुगव या गुणप्रेरक गृहस्थ जो आत्म कल्याण में सहायक हो वह कल्याण मित्र । उनका सग व सेवा कैसे करना चाहिये ? अंधो विवाणूकट्टए वाहिए विव विजे दरिदो विव ईसरे, भीनो विव महानायगे।न इयो सुंदरतरमन्नंति बहुमाणजुत्ते सित्रा, प्राणाकंखी प्राणापडिच्छगे, प्राणाविराहगे, आणानिफायगेत्ति। .कोई अघ भयानक जंगल में फंस जाय । पशुमों प्रादि के भय में रास्ता न मिले, तब कोई बचावे तो कैसा ? धर्ममित्र भी भयानक भवाल्वी में से (५३) For Private And Personal Use Only

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