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वाले पदार्थों की वे सलाह देंगे अर्थात् सांसारिक कार्य बढ़ाने की ही सलाह देंगे । ये कार्य दोनों लोक के लिए निंद्य तथा अशुभ कर्मों के अनुबध कराने वाले तथा पाप व्यापारों की परंपरा चलाने वाले हैं।
सक्षेप में पांच कर्तव्य ये हैं :- १. धर्म गुणों के स्वरूप की विचारणा २. गुणों का स्वीकार ३. प्राज्ञा का अभ्यास व आधीनता ४. अकल्याण मित्रों का त्याग ५. लोक विरुद्ध का त्याग ।
परिहरिज्जा सम्मलोगविरुद्ध, करुणापरेजणाणं न खिसाविज्ज धम्म, संकिलेसो खु एसा, परम बोहिबीअम अबोहिफलमप्पणोत्ति ।
सत्य अहिंसा आदि नये गुणों तथा अनादि दुगुणों के स्वरूप का पूरा ख्याल होना चाहिये । साथ ही साथ व्यसन निंदा चुगली आदि इस लोक तथा परलोक बिरद्ध कार्यों को छोडना चाहिये । अन्यों को प्रशूभ अध्यवसाय (चित्तसक्लेश) करवाने वाला व्यवहार भी छोड देना चाहिये । 'अन्यों 'पर इतनी दया । हो कि उसके कार्य से अन्यों को
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