Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिवज्जिऊण पालणे जइजा, सयाणागाहगे सिया, सयाणाभावगे सिपा,सयाणापरतंते सिया। ये धर्मगुण रत्न की पेटी या महामत्र के समान हैं । अतः उनका पालन व रक्षा प्रयत्नसहित, कष्ट उठाकर भी करना चाहिये । अनन्तकाल बाद मिले होने से तथा थोड़े प्रयत्न से (इस भवके) भविष्य के अनन्त काल के लिए लाभकारक होंगे । सांसारिक कार्य व लक्ष्मी के लिए जो प्रयत्न होता है, उससे भी अत्यन्त ज्यादा प्रात्माके सच्चे रत्न समान गुणों की प्राप्ति व रक्षा के लिए आवश्यक है। पालन की विधिमें जिनाज्ञा के ग्राहक, भावक तथा परतत्र बनें । जिनाज्ञा क्या है उसे जानने के लिए उसका अध्ययन श्रवण करना और उसके वितक बनकर आज्ञा से प्रात्मा को भावित करना अर्थात् अोतप्रोत हो जाना चाहिये । इससे जगत की वस्तुओं के परतत्र बनने के बजाय अधिकाधिक जिनाज्ञा के परतत्र अर्थात् जो कुछ वह आज्ञा कहे वैसा ही करने वाले बन जाये। For Private And Personal Use Only

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