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सुन्दर प्रणिधान पूर्वक सम्यक् रीत से - प्रगांत चित्तसे - पढे, सुनें तथा सूत्र व अर्थका मनन चिंतन
करें।
सूत्रकार अन्तिम मगल कहते हैं। देवेन्द्र गणधरों से वन्दित परम गुरु वीतराग को मैं नमस्कार करता हूँ। अन्य नमस्कार योग्य गुणाधिक प्राचार्य
आदि को नमस्कार हो । सर्वज्ञ का शासन जयवत हो । प्राणी वरबोधि लाभ प्राप्त करके सुखी हो, सुखी हों, सुखी हों।
इस तरह पचसूत्र के पाप प्रतिघात गुणबीजाधान नामक प्रथम सूत्र का संक्षिप्त विवेचन पूर्ण हुआ।
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