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मृगने दान देने वाले की तथा बलदेव मूनी के सयम की केसी अद्भुत अनुमोदना की कि वह भी उनके साथ ही ५ वे देवलोक में ही उत्पन्न हना।
इस सूत्र को सम्यक् रूपसे पढने का फल कहते हैं। कैसा अपूर्व फल ? सम्यक् रीति अर्थात् हृदय में सवेग का प्रकाश फैलाकर अर्थात् पूर्वकथित चार शरण में अरिहतादि के कहे विशेषणों के प्रति हृदयपूर्वक श्रद्धा व आदर, दुष्कृत गर्दा में हृदय में से दुष्कृत रूपी शल्य को हटाकर अपने दोषों के प्रति सच्चा दुग'छा भाव, अहो मैं केसा अधम ? कितना दुष्कृत किया ? तथा सुकृत अनुमोदना में असल क्रिया पर्यत प्रात्मा को ले जानी वाली प्रार्थना हो । अरिहतादि के सामथ्यं, प्रभाव की श्रद्धा नथा अनन्त काल बाद ये तीन उपाय मिले, उसके लिए अपने आपको धन्य माने ।
___ इस सूत्रको पढ़ने सुनने तथा अनुप्रेक्षासे कर्म की स्थिति व दलिक कम होते हैं और उनके सवं अनबंध मन्द पड़ते हैं। यह सूत्र महामत्र महापौषधि व परम रसायत समान है, जिसके पठन, मनन
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