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वा, कयं वा कारावियं वा अणुपोइयं वा, रागेण वा दोसेण वा मोहेण वा, इत्थं वा जम्मे जम्मंतरेसु वा, गरहिय नेयं दुबकडमेयं उज्झियव्वमेयं, वियाणियं मए कल्लाणमित्तगुरुभगवंतवयणानो, एवमेयंति रोइयं सद्धाए, अरहंतसिद्धसमक्खं गरहामि अहमिणं, दुक्कडमेयं उज्झियब्वमेयं, इत्थ मिच्छा मि दुक्कडं, मिच्छा मि दुक्कडं, मिच्छा मि दुक्कडं ॥
इन चारों के शरणों में गया हुआ मैं अपने दुष्कृत की गर्दा (निंदा) करता हूँ। जिन अरिहत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु या साध्वी के प्रति, अन्य भी माननीय एवं पूजनीय धर्मस्थानों के प्रति, तथा माता पिता, बंधू मित्र या उपकारी जनों के प्रति, सम्यग् दर्शनादि मोक्षमार्ग को प्राप्त अथवा अप्राप्त सामान्यत: सर्व जीवों के प्रति, मोक्षमार्ग की साधक अथवा बाधक वस्तुओं के प्रति भी मैंने जो कुछ न आचरण करने योग्य, अनिच्छनीय पाप या पाप पर परा वाला मिथ्या आचरण (दुष्कृत), सूक्ष्म या
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