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जलसे बडे होने परभी दोनों से कमल की तरह अलिप्त हैं। वे ध्यान तथा अध्ययन में लीन रहते हैं। समिति गुप्ति स्वाध्याय प्रादिसे प्रात्म भावों को उत्तरोत्तर विशुद्ध करते रहते हैं। अतः इन वस्तुओं की प्राप्ति के लिए जिनसे क्रमशः मोक्षप्राप्ति होगी, मैं उनका शरण स्वीकार करता हूँ। (वे भावी नय से सिद्ध हैं)।
मरे! मानव भव की कैसी सफलता? सचमुच ही यदि काम, क्रोधादि, मोह, हास्य, मद मत्सर रति अरति जैसे दुष्ट भावों को उनके प्रतिद्वंद्वी गुणों से धो कर इस जन्म में नहीं मिटाये तो वह कार्य कब होगा ? ___ चौथा शरण धर्म का है । सुर (ज्योतिषी व वैमानिक) तथा असुर (भवनपति व व्यतर) से धर्म सेवित है। अत: जगतकी समृद्धि के किसी भी दाता से ज्यादा सेवनीय हैं । इस उच्चतम धर्म प्राप्ति का गौरव मन में होना चाहिये । मोह तिमिर को हटाने में वह सूर्य सम है। रागद्वेष रूपी विषके लिए (उसे हरने वाला) परम मंत्र समान है । धर्म का शरण लेने वाला कोई प्राशंसा या आकांक्षा नहीं
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