Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रखता क्योंकि वे राग विष के पोषक हैं । जहां धर्म प्रवृत्ति के बदले राग तांडव हो वहां से वह दूर रहे। धर्म सकल कल्याणकारी है। वह कर्मवन को, जहाँ दुःख व क्लेश के फल उत्पन्न होते हैं, जलाने में अग्नि समान है । सिद्धभाव अर्थात् मुक्ति का साधक है । ऐसे जिन प्रणीत धर्म का शरण मैं यावज्जीव के लिए स्वीकार करता हूँ। अरिहंतादि चारों का शरण प्राप्त करके (शरण सहित) मैं अरिहतादि के प्रति सेवन किये हुए अपने दुष्कृत्यों की गर्दा, निंदा करता हूँ। आज तक श्री अरिहत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी अथवा अन्य माननीय पूजनीय धर्मस्थानों के प्रति, (अनेक जन्मों के) माता, पिता, बन्धु, मित्र या उपकारी, मोक्षमार्ग पर गमन करने वाले सामान्यतः प्रत्येक जीवों के प्रति तथा मोक्षमार्ग के उपयोगी (मन्दिर पुस्तकादि) साधनों या अनुपयोगी साधनों (इन सब) के प्रति जो कुछ विपरीत आचरण किया हो, अनिच्छनीय, अनाचरणीय या कुछ भी न करने योग्य या न सोचने योग्य कोई भी पाप किया हो, उस पाप के विपाक में पुनः पाप बन्ध हो वैसा [३५] For Private And Personal Use Only

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