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एवमेयं सम्म पढमाणस्स सुणमाणस्स अणुप्पेहमाणस्स सिढिलीभवंति परिहायंति खिजंति असुहकम्माणुबंधा निरणबंधे चासुहकम्मे भग्गसामत्थे सुहपरिणामेणं, कडगबद्ध विव विसे अप्पफले सिया, सुहावणिज्जे सिया, पपुणभावे सिया।
इस प्रकार (चार शरण, दुष्कृत गर्दा तथा सुकृत अनुमोदन को) जो सभ्यक रूप से पढता है, सुनता है, (सूत्र के अर्थ सहित पुन: पुन: चिंतन से) अनुप्रेक्षा करता है, उसके अशुभ कर्मबंध शिथिल होते हैं, कम होते हैं और क्षीण भी होते हैं। अरे इस (सूत्र पठन व अनुप्रेक्षा) से वे अशुभ कर्म (उनके रस, स्थिति व प्रदेश) निरनुबंध होते हैं, उनको शक्ति भग्न होती है । इससे उत्पन्न शुभपरिणाम से कटक बद्ध से जैसे जहर निर्बल तथा निष्फल होता है, वैसे अशुभ कर्म भी अल्प फलवाले, सुखपूर्वक निर्जरा करने लायक तथा पुनः कर्मबंध न हो वैसे बन जाते हैं।
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