________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उसकी जड राग में हैं। तीव्र कोटि का राग नहीं जाता, तबतक मिथ्यात्व नहीं जाता । यह राग धनमाल आदि जड के प्रति तथा पुत्र पत्नी आदि व्यक्ति याने चेतन के प्रति भी होता है।
तोत्र राग में कषाय (क्रोध, मान आदि चारों) करने जैसे लगते हैं । यही तीव्र कषाय अनन्तानुबधी है । जब तक ये हैं, तब तक संसार का रस तथा अतत्त्व का दुराग्रह हृदय में से हटेगा नहीं । हिंसा, झूठ, चोरी आदि पाप किस के लिए ? पुत्र, पत्नी या धन के लिए या उनपर राग के कारण ।
प्रशस्त राग बधन कर्ता नहीं, पर छुडाने बाला है । देव गुरु व धर्म के प्रति राग प्रशस्त राग है इससे पाप बंध नहीं होता । प्रशस्त राग में लेश्या धर्म की है । संसार के लाभकी अपेक्षा से होने वाला राग अप्रशस्त है। संसार से मुक्त होने और उसके उपाय के लिए राग प्रशस्त राग है । धर्म लेश्या की मात्रा व वेग (Force) जितने कम उतना पुण्य कच्चा। धर्म को लेश्या-भावना जोरदार उतना पुण्य भी जोरदार । शालिभद्र की लेश्या ऊची थी । पेट की पीडा के समय उसका अंकमात्र ध्यान
[२४]
For Private And Personal Use Only