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गुरु में और खीर का दान करवाने के उनके उपकार में । कैसा सुन्दर योग, खीर का दान, वह भी महात्मा को । ऐमी दान धर्म की अनुमोदना से ही वह शालिभद्र बना, जहाँ वैराग्य प्राप्त करने वाली लक्ष्मी मिली।
राग अात्मा में वस्तु के प्रति आकर्षण पैदा करता है । राग द्वेष से भी खूब बलवान तथा महा अनर्थकारी है | राग मात्मा को रगता है । अतः जो इष्ट के प्रति प्राकर्षण रहित तथा अनिष्ट के प्रति अप्रीति रहित हैं, वे ही वीतराग हैं।
मोह प्रात्मा को भयंकर नुकसान करता है, पर साथ ही नुकसान को लाभ में गिनाता है। मोह के कारण आनन्द से राग करता है, राग को हितकारी मानता है। प्रात्मा में से मोह (मिथ्यात्व) के हटने से राग दुश्मन लगेगा । मोह भान भुलाता है, दोष का बचाव करता है । मोह दोष को गुण समझेगा, यही भयंकर है ।
सर्वज्ञ के ज्ञान का प्रकाश जबरदस्त होता है। अनन्तानन्त काल की सर्व घटना, सर्व भाव, त्रिकाल के सर्व बीवों के सर्व भाव तथा सर्व पदार्थों के सर्व
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