Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही समस्त जिन वाणी का सार है । संसार में दुःख ही दुःख है, सुख तो है ही नहीं । जो है वह है मात्र सुखाभास । पुण्य से जो सामग्री मिलती है वह है परिग्रह, वही पाप है। संसार का सभी सुख मात्र सांयोगिक है । स योग में वियोग छिपा होन से वह दुःवरुप है। जो विषय सुख है वह केवल दाद या खुजली को खुजालने जैसे सुख सा है । जन्म, मृत्यु, रोग, शोक आदि सब दुःख हैं, यही ममार है। ससार दु:ख फलक है, संसार भवांतर में जन्म जरा ग्रादि दुःख देन वाला है । पूर्वस चित कर्म से उत्पन्न शरीर तथा अन्य सयोगरूप ससार हमें भोगना पड़ता है और उसके फलस्वरूप पुनः नये कम बध होकर नये जन्मादिरूप दुःख रूप संसार की उत्पत्ति होती है। पुनः वह अनेक जन्मों के दुःख की पर परा का सजक भी है। क्योंकि वर्तमान जन्म में जीवन को बिताते हुए, पिछले कर्मो को भोगते हए नये इतने ज्यादा कर्मों का बन्ध होता है कि पुनः अनेक जन्म लेने पड़ेंगे और उन उन जन्मों में पुनः कम [२७] For Private And Personal Use Only

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