Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार बढ़ा है। धर्म भी प्रादर रहित सेवन से हृदय मे स्थान प्राप्त नहीं करता। (४) विधि - औषधि सेवन अनुगमन तथा व पथ्य त्याग की विधि से ही तो लाभप्रद होता है। अत: भवरोग निवारक धर्म औषधि का विधि सहित सेवन होना चाहिये। औचित्य में योग्य व्यवसाय, उचित लोक व्यवहार, उचित रहनसहन, भाषा, भोजन, उचित बर्ताव आदि का समावेश होता है । सातत्य में प्रत्येक धर्म प्रवत्ति नित्य नियमित सतत होनी चाहिये । धर्म तथा धर्मी पर रत्न निधान सा आदर हो । विधि में शास्त्रोक्त काल, स्थान, प्रासन अवल बन आदि सब विधि का पालन जरूरी है। शुद्ध धर्म को भाव सहित आत्मा में स्पर्श होना चाहिये । यह स्पर्श मिथ्यात्वादि पाप नाश से ही होता है । इस विशिष्ट ( जो पुन: उत्पन्न न हो) पाप नाश के लिए तथा भव्यत्वादि भावों का संयोग होना चाहिये । साध्य व्याधि जोसे नथा भव्यत्व के परिपाक से ही मोक्षरूप भाव आरोग्य की प्राप्ति होता है। For Private And Personal Use Only

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