________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बन्ध तो चालू ही रहेगा। इसीलिए संसार दु:खानुबन्धी है ।
हमारा जीव अनादिकाल का है। अनन्त काल बीत गया पर इसका भटकना चालू है । इस ग्रनन्त काल में इसने कितने घोर कष्ट भागे होंगे ? क्या फ़िर भी संसार से इसे थकान लगी ? लगी हो तो संसार का अन्त लाने के लिए कटिबद्ध क्यों न हो? अफसोस, हम इस अमूल्य मानव भव को व्यर्थ खो रहे हैं। अनन्त काल के मुकाबले अल्पकाल के मानव भव में थोडा कष्ट उठाकर पालन किया गया चारित्रसंयम हमें हमेशा के लिए मुक्ति दिलाने में समर्थ है । इसीलिए यह मानवभव अत्यन्त अमूल्य है । लाखों के हीरे से मुट्ठीभर चने खरीदने की तरह तुच्छ व आत्मघातक विषय सुख खरीदने में जीवन व्यथं खो रहा है । श्रोह जीव ! जरा ठहर, सोच, तू क्या कर रहा है ? क्या करना चाहिये ?
घटाने व मिटाने का
क्या इस संसार को उपाय है ? हाँ है । वही यहाँ कहा है।
संसार की भयानकता से बचने का एकमात्र स्थान मोक्ष है । यदि वह हमारा ध्येय बन जाय,
[२८]
For Private And Personal Use Only