________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३) दीनता - बात बात में दुःखी होता है । सब अच्छा मिले और जरा कुछ भी कम हो तो रोने बैठे । (४) मत्सर, ईर्षा, असहिष्णुता । किसी का अच्छा, भलाई या सुख देखा नहीं जाता । दीनता में न मिलने का दुःख है, मत्सर में दूसरे को मिलने का दुःख है और (५) भय में प्राप्त वस्तु के खोने का डर है । यह चिंता का दुःख है। इससे दुर्ध्यान होता है । हाय, हाय, चला जायगा इत्यादि । प्रातध्यान और रौद्रध्यान भी इसीसे पाता है। (६) शठता- प्रत्येक बात में माया, कपट, विश्वासघात करता है । (७) अज्ञता दो प्रकार से - मूर्खता व मूढता । मूर्खता में समझ या बुद्धि नहीं। लूटो, इकठ्ठा करो, मौज करो आदि मूर्खता है । मूढ़ता में पढा है, तब भी मूढ । ज्ञान है पर विवेक नहीं । आत्मभान नहीं है । मानव पशुसे क्यों विशेष है, यह न जानना, तत्त्व या धर्म न समझना अथवा उसे जानते हुए भी उसका प्रयत्न न करे वह मूढता है। (८) निष्फलारंभसगता - भवाभिनन्दी विचार रहित (मूर्ख) या उलटे विचार (मूढ) से निष्फल कार्य ही करेगा । उसे लक्ष्मी मिली हो, तो भी वह
[२१]
For Private And Personal Use Only