Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकता है । साधु व श्रावक के गुण, वे गुण हैं जो आत्मा में पाने से हो अन्तिम फलको प्राप्ति संभव है। प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ भी कार्य करता है, वह रागद्वेष वश करता है। इससे कर्मबध होता है। इन कर्मों के उदय के समय पुनः नये कर्मों का बध होगा। इसे अनुबध कहते हैं। इस अनुबध को, पाप के निरंतर प्राधव को, तोडना ही अति आवश्यक है। यही कार्य यह प्रथम सूत्र करता है । __गुण अर्थात् धर्मगुण, दर्शन ज्ञान तथा चारित्र याने विरति-देश या सर्व । इसकी प्राप्ति के लिए गुण के बीज को बोना पड़ेगा । पाप के प्रतिघात बिना धर्म गुण के बीज कैसे बोये जावेंगे ? धर्मग्रण की प्राप्ति ही सच्ची प्राप्ति है। इसकी अप्राप्ति पर अन्य सब प्राप्ति अप्राप्य या नष्ट है। प्रशुभ कर्म के अनुबध करवाने वाले मिथ्यात्वादि पाश्रव को उखाड कर अशुभ का अनुबध रोककर शुभकर्म का अनुबध जगाना जरूरी है। अन्यथा शुभकर्म भी उदय में आकर अनुबध बिना स्वय नष्ट हो जायेंगे । [१६] For Private And Personal Use Only

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