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णमो नमियनमियाणं परमगुरुवीयरागाणं नमो सेस नमुक्कारारिहाणं। जयउ सव्वण्णुसासण ॥ परमसंबोहीए सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा ।१॥ पंचसुत्ते पढमं पावपडिग्घाय गुण बीयाहाणसुत्त सम्मत्त ।।१।।
वदनीयों के भी बदनीय परम गुरु वीतराग को मैं नमस्कार करता हूँ। शेष नमस्कार योग्य सिद्ध आचार्यादि को मैं नमस्कार करता हूँ। श्री सर्वज्ञों का शासन जयवंत हो और शासन के वरवोधि लाभ से जीवों को सुख हों, जीव सुखी हो, जीव सुखी हों ।
इस तरह पंचसूत्र में से पाप प्रतिघातक तथा गुणवीजाधान करने वाला यह प्रथम सूत्र पूर्ण हुना।
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