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श्री चिरंतनाचार्य विरचित पंचसूत्र की श्री हरिभद्रसूरि महाराज द्वारा रचित टीका पर से
प्रथम सूत्रका (संक्षिप्त) हिन्दी विवेचन
जीव अनन्तकाल से संसार में भटक रहा है। उसमें से छूटने का उपाय इस सूत्र में बताया गया है।
इसमें पांच सूत्र हैं। पांचवाँ सूत्र-प्रव्रज्याफलमोक्ष की प्राप्ति बताता है, जिसके लिए प्रथम कारण है, पाप का प्रतिघात । पाप याने अशुभ अनुबध के पाश्रवभूत गाढ मिथ्यात्व, भवरुचि आदि । वे पाप आत्मा पर से अपनी पकड छोड दें, यह उनका घात हुआ । इससे प्रात्मा में गुणबीज बोया जा
महान शास्त्रकार सूरिपुरन्दर श्रीहरिभद्रसूरिजी ने अर्थ गभीर टीका लिखी है । टीकाकार महर्षि के विवेचन के आधार पर प. पू. आ. श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी के शिष्यरत्न पू. प. जी म. सा. श्रीभानूविजयजी ने गुजराती में 'उच्च प्रकाशना पथे' नामक विस्तृत विवेचन प्रकट किया है। उसके प्राधार पर यहाँ संक्षिप्त हिन्दी विवेचन दिया गया है ।
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