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प्रचितसत्तिजुत्ता हि ते भगवंतोवीयरागा सव्वण्णु परम कल्लाणा परमकल्लाण हेउ सत्ताणं ।।
वे वीतराग सर्वज्ञ भगवंत अचित्य शक्ति युक्त हैं, परम कल्याणकारी हैं और सर्व जीवों के परम कल्याण में हेतु रूप हैं।
मूढे अम्हि पावे अणाइमोहवासिए, अणभिन्ने भावप्रो, हियाहियाण अभिन्ने सिया । अहियनिवित्त सिया, हियपवित्ते सिया,बाराहगे सिया उचियपडिवत्तीए,सव्वसत्ताणं सहियंति।इच्छामि सुक्कडं, इच्छामि सुक्कडं, इच्छामि सुक्कडं ।
. मैं मूढ हूँ, पाप से, अनादि मोह से, वासित हूँ। अतः अनभिज्ञ (अज्ञानी) हूँ। अब मैं मेरे हिताहित भावों को जाननेवाला, हित में प्रवृत्त, अहित से निवृत्त, पाराधनामें प्रवत्त, तथा सर्व जीवों के साथ प्रौचित्य के प्राचरण सहित पाराधक बनू । इस प्रकार के सुकृतों का मैं इच्छुक हूँ, सुकृतों का इच्छुक हूं', सुकृतों का इच्छुक हूँ।
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