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सव्वेसि सावगाणं मुक्खसाहणज्ञोगे, सव्वेसि देवाणं, सव्वेसि जीवाणं होउकामाणं कल्लाणासयाणं मग्गसाहणजोगे॥
सविग्न (मोक्ष तथा मोक्षमार्ग का इच्छुक) मैं यथाशक्ति सुकृतों का स्वयं प्रासेवन करू तथा अन्यों के सुकृतों की अनुमोदना करता हूँ। सर्व अरिहंतों के सर्व अनुष्ठानों की, सर्व सिद्धों के सिद्ध भावों की सर्व प्राचार्यो के प्राचार की, सर्व उपाध्यायों के सूत्रदान की, सर्व साधु (साध्वी) के साधु क्रियाकी, सव श्रावक (श्राविकानों) के मोक्ष साधना की क्रियानों की, सव देवों तथा सव जीवों के विशुद्ध प्राशय तथा मोक्ष साधक सर्व योगों की अनुमोदना करता हूँ। होउ मे एसा अणमोयणा सम्मं विहिपविया, सम्म पडिवत्तिरूवा, सम्म निरइयारा परमगुणजुत्तारहताईसामत्थरो॥
परमगुण निधान अरिहतादि के सामर्थ्य से मेरी यह अनुमोदना सभ्यक विधिपूर्वक, उत्तम निर्मल आशय वाली, सम्यक स्वीकार वाली, तथा सम्यक निरतिचार रूप हो ।
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