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हो। हे वीतराग! आपके शासन में नियाणा बांधने की मनाही की गई है, तब भी मैं यह मांगता हूँ कि भवोभव मुझे आपके चरणों की सेवा प्राप्त हो । हे नाथ ! आपको प्रणाम करने के फलस्वरूप मुझे दुख का क्षय, कम का क्षय, समाधिमरण और अगले जन्मोंमें बोधिका लाभ प्राप्त हो । सर्व मगलों का मगल स्वरूप (मंगलपना) सर्वकल्याण को करने वाला तथा सर्व धर्मों में मुख्य ऐसा जैनशासन हमेशा जयवंत हो। विवेचन :
आत्मिक दृष्टि से मांगी जानेवाली सभी वस्तुएं यहां मांग ली गई हैं। इनके अलावा कोई भी पौद्गलिक, भौतिक या इहलौकिक व पारलौकिक वस्तुकी जरा भी मांग नहीं करना चाहिये । वह नियाणा है, जिसकी मनाही है। इसीलिए प्रभु के चरणों की सेवा ही इसमें मांगी है।
प्रथम मांग भवनिर्वेदकी की गई है। भव याने संसार से वैराग्य उत्पन्न होना अत्यन्त आवश्यक है । प्रगला प्रकरण पचसूत्र का प्रथम सूत्र संसार के कुछ स्वरूप को समझाकर हमें इसकी प्राप्ति में
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