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प्रवचन- १
है जो निकट खड़ा है । कोई कारण नहीं हैं, कोई बाधा नहीं है, कोई रुकावट नहीं है, तो उसे कह दूं। और कहने में शब्द एकदम असमर्थ हो जाता है ।
तो महावीर जैसा व्यक्ति जब बोलता है पहला झूठ वह हो जाता है जब वह बोलता है । वह जो उसने बोला वह एक प्रतिशत भी वह नहीं है जो उसने जाना। फिर भी वह हिम्मत करता है, साहस जुटाता है और सोचता है क्या है । नहीं हजार किरणें पहुंचेगी तो एक किरण पहुंचेगी। खबर तो पहुंच जाएगी। वह बोलता है । अगर महावीर की वारणी पकड़ कर ही कोई महावीर की खोज करने जाए तो भी महावीर नहीं मिलेंगे । ठेठ महावीर को सुनकर ही कोई अगर उनकी वाणी पकड़कर खोजने जाए तो एङ्गल बिल्कुल बदल जायेगा । जो महावीर की वाणी को ही पकड़कर महावीर को खोजने जायेगा तो कहीं पहुंचेगा जहां महावीर नहीं होंगे। बिल्कुल चूककर निकल जायेगा वहां से, बिल्कुल ही चूक जायेगा। क्योंकि शब्द ने नहीं जाना है । वह जाना है जो महावीर ने जाना है । वह जाना है निःशब्द ने । और हमने पकड़ा है शब्द । अब शब्द से हम जहां जाएंगे वह वहां नहीं ले जाने वाला है जहां निःशब्द में जाने वाला गया होगा । और फिर अढ़ाई हजार साल बाद महावीर का शब्द जिन्होंने सुना उनमें से जिन्होंने समझा होगा थोड़ा-बहुत, वे मौन में चले गये होंगे। जिनको थोड़ी भी समझ आई होगी, पकड़ आई होगी और निःशब्द की झलक का जरा सा इशारा मिला होगा, वे निःशब्द में भाग गए होंगे। जिनको समझ में नहीं आई होगी वे शब्दसंग्रह करने में लग गये होंगे ।
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तो महावीर के पास जो समझा होगा वह मोन में गया होगा । जो नहीं समझा होगा वह गणधर बन गया होगा । अब यह बड़ा उल्टा मामला है । आम तोर से हम सोचते हैं कि महावीर के पास जो गणधर हैं, वे उनके सबसे अधिक समझने वाले लोग हैं । इससे बड़ा झूठ नहीं हो सकता । महावीर के पास जो सबसे ज्यादा समझने वाला होगा वह मौन में चला गया होगा । बह तो गया होगा खोज में वहाँ । और जो सबसे कम महावीर क्या बोल रहे हैं, उसको दूसरे तक पहुंचाने को व्यवस्था करने में लग गया होगा । तो गणधर वे नहीं हैं जो महावीर को सर्वाधिक समझ सकें । गणधर वे हैं जो महावीर की वाणी का यथार्थ ममं तो समझ न पाए, किन्तु उनके शब्दों को पकड़ बैठे और उनका संग्रह करने में लग गए
समझने वाला है, वह
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SOCIETY
10 JUN 1975
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