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शुभ आशीर्वाद
परस्परोपग्रहो जीवानाम्
अर्हम्
भगवान महावीर ने जो कहा, वह पच्चीस शतक पुराना है, पर जो सत्य हैं वह न पुराना होता है और न नया, वह कालिक होता है। सार्वभौम, सार्वदेशिक और सर्वात्रिक होता है। इसलिए वह आज भी उतना प्रासंगिक हैं, जितना दाई हजार वर्ष पहले था। संभवत: आज अधिक प्रासंगिक हैं। हिंसा, आतंकवाद, उग्रवाद, हत्या, आत्म-हत्या, भ्रूण हत्या आदि हिंसा की समस्याओं ने वातावरण को अधिक विषाक्त बना दिया। पर्यावरण का प्रदूषण एक विकट समस्या है। उससे कहीं अधिक विकट समस्या है मानसिक बौद्धिक और भावनात्मक प्रदूषण। वर्तमान अर्थशास्त्र आदि की एकांगी अवधारणाओं के कारण सचाई को देखने का दृष्टिकोण बदला हुआ है। इस परिस्थिति में हम भगवान महावीर को और उनकी वाणी को पढ़ने का प्रयत्न करें तो संभव है - उलझी हुई गुत्थी सुलझ जावेगी।
राजस्थान जैन सभा जयपुर द्वारा प्रकाशित महावीर जयन्ती स्मारिका में भगवान महावीर दर्शन की प्रासंगिकता रेखांकित होगी, यह विश्वास किया जा सकता है।
- आचार्य महाप्रज्ञ, बीकानेर
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007
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