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शुभ आशीर्वाद
परस्परोपग्रहो जीवानाम्
बड़ी प्रसन्नता का प्रसंग है कि पूर्व वर्षों की भाँति इस वर्ष भी भगवान महावीर जयन्ती स्मारिका का प्रकाशन हो रहा है।
पूर्व जन्मों से ही जिन का जीवन परोपकार में ही व्यतीत होता आ रहा है, उनके गुणों का वर्णन उनके वचनों का प्रकाशन किसी भी रूप में
और कितना भी प्रकाशित करें, वह थोड़ा ही है। वर्तमान में प्राणी भूलों से भरा है। इसलिए इस स्मारिका का प्रकाशन भी प्रतिवर्ष आवश्यक है। जिसकी पूर्ति हो रही है। परम पूज्य मुनि कुंजर आचार्य श्री आदिसागरजी अंकलीकर ने बताया कि बार-बार स्मरण करने से आम्नाय नाम का स्वाध्याय होता है और आगे भी स्मृति बनी रहती हैं।
यह स्मारिका आत्मा को निखारने में दर्पणवत् सहायक है तथा कर्मों की ग्रन्थियों को खुलने के लिए जरूरी है। इसका लेखन पठन-पाठन, मनन-चिंतन, वितरण आदि केवलज्ञान ज्योति को प्रकटने वाली है।
अत: इसके प्रकाशन के कार्य में जो प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोगी हैं तथा संपादक महोदय को मेरा शुभाशीर्वाद हैं। वे इसी प्रकार से जिनवाणी की सेवा करते हुए केवलज्ञान ज्योति को प्रगट करें।
- आचार्य सन्मति सागर, ओरंगाबाद
महावीर जयन्ती स्मारिका'2007
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