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विजयारानी ने दो स्वप्न देखे। पहला स्वप्न था कि राजा सत्यन्ध र ने मेरे लिए आठ घण्टाओं से सुशोभित अपना मुकुट दिया है और दूसरा स्वप्न था कि वह जिस अशोकवृक्ष के नीचे बैठी थो उसे किसी ने कुल्हाड़ी से काट दिया है और उसके स्थान पर एक छोटा-सा अशोक का वृक्ष उत्पन्न हो गया है। प्रातःकाल होते ही रानी ने राजा से स्वप्नों का फल पूछा। राजा ने कहा कि मेरे मरने के पश्चात् तुम शीघ्र ही ऐसा पुत्र प्रास करोगी, जो आठ लाभों को पाकर पृथिवी का भोक्ता होगा। स्वप्नों का प्रिय तथा अप्रिय फल सुनकर रानी का चित्त शोक और हर्ष से भर गया। उसकी व्यग्रता देख राजा ने उसे अच्छे शब्दों से सन्तु कर दिया, जिससे दानी का माल सुख से ब्यतीत होने लगा।
__उसी राजपुर नगर में एक गन्धोत्कट नामक धनी सेठ रहता था। उसने एक बार तीन ज्ञान के धारक शीलगुप्त मुनिराज से पूछा, "भगवन् ! हमारे बहुत-से अल्पायु पुत्र हुए है, क्या कभी दीर्घायु पुत्र भी होगा ?" मुनिराज ने कहा, "हाँ, त दोर्षायु पुत्र प्रास करेगा। किस तरह ? यह भी सुन । तेरे एक मुल पुत्र उत्पन्न होगा। उसे छोड़ने के लिए जब तू वन में जायेगा तब यहीं किसी पुण्यात्मा पुत्र को पायेगा। वह पुत्र समस्त पृथिवी का उपभोक्ता हो अन्त में मोक्ष-लक्ष्मी को प्रास' करेगा।" जिस समय मुनिराज, गन्धोत्कट से यह वचन कह रहे थे उसी समय वहाँ एक यक्षी बैठी थी। मुनिराज के वचन सुन यक्षी के मन में होनहार राजपुत्र की माता का उपकार करने की इच्छा हुई । निदान, जब राजपुत्र की उत्पत्ति का समय आया तब वह यक्षी उसके पुण्य से प्रेरित हो राजकुल में गयी और एक गाँड्यन्त्र का रूप बनाकर पहुंची।
वसन्त ऋतु का समय था। एक दिन रुद्रदत्त पुरोहित प्रातःकाल राजा के घर गया। उस समय रानी आभूषणरहित बैठो थी। पुरोहित ने पूछा कि राजा कहाँ हैं ? रानी ने उत्तर दिया कि अभी सोये हुए हैं, इस समय उनके दर्शन नहीं हो सकते । रानी के इन वचनों को अपशकुन समझ वह लोट आया और काष्ठांगारिक मन्त्री के घर गया। पाप-बुद्धि पुरोहित ने मन्त्री से एकान्त में कहा, "तू राजा को मार डाल ।” मन्त्री ने पुरोहित की बात मानने में असमंजसता दिखायी तो पुरोहित ने दृढ़ता के साथ कहा, "राजा के जो पुत्र होनेवाला है वह तेरा प्राणघातक होगा इसलिए इसका प्रतिकार कर 1" रुद्र दत्त इतना कहकर घर चला गया और रोग से पीड़ित हो तीसरे दिन मर कर चिरकाल तक दुख देनेवाली नरक गति में जा पहुंचा।
___ इघर काष्टांगारिक में रुद्रदत्त के कहने से अपनी मृत्यु की आशंका कर राजा १. चिन्तामणि आदि में तीन स्वप्नों की चर्चा है--पहले स्वप्न में एक विशाल अशोक वक्ष वेरमा,
दूसरे स्वप्न में उस वक्ष को नष्ट हुअा देखा और प्रोसरे स्पष्क में उस नष्ट वृक्ष में से उत्पन्न युए
एफ छोटे अशोक पृस को घेखा जिसकी बार शाखाओं पर आठ मालाएँ तटक रही थी। २. गचिन्तामणि में पर्या है कि राजा सरमन्धर ने रानी का बाकाश-भ्रमण सम्बन्धो दोहद पुर्ण _करने के लिए कारीगर से मयूरयन्त्र बनवाया था और इसमें बैठाकर उसे आकाश में घुमाया था। १. गचिन्तामणि आदि में इसको कोई चर्चा नहीं है।
कथा