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की जाती है उपे सकाम निर्जरा कहते हैं और स्थिति पूर्ण होने पर कर्म-परमाणु स्वयं खिरते रहते हैं उसे अकाम निर्जरा कहते हैं। सकाम निर्जरा को अविपाक और अकाम निर्जरा को सविपाक निर्जरा मी कहते हैं। संवरपूर्वक होनेवाली निर्जरा से ही जीव का कल्याण होता है। निर्जरा का प्रमुख कारण तपश्चरण और व्रताचरण है । तपश्चरण के उपवास, ऊनोदर, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तप्राय्यासन, कामक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, बयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान इस प्रकार बारह भेद हैं 1 व्रताचरण के सागार और अनगार के भेद से दो भेद हैं। सागार गृहस्थ को कहते है और अन्तमार मनि को । हस्थ सम्मन्धी हताचरण के पास अणवत्त, तीन गुणव्रत और पार शिक्षाव्रत के भेद से बारह भेद हैं। इन सब व्रतों के पहले सम्यक्त्व-सम्पग्दर्शन का होना आवश्यक है।
धर्म, आस, गुरु और तत्वार्थ का यथार्थ थद्धान करना सम्यक्त्व कहलाता है। वीतराग-सर्वज्ञ देव के द्वारा कथित धर्म, धर्म कहलाता है, अरहन्त-बीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी जिनेन्द्र को माप्त या देव कहते है, विषयों की आशा से रहित तथा ज्ञानध्यान में लीन निम्रन्थ साधु गुरु कहलाते हैं, और जीवाजीवादि उपर्युक्त स्वार्थ कहलाते है। सागार-गृहस्थ को हिंसा, शूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाच पापों का एकदेश त्याग करना अनिवार्य है। धूत, मांस, मदिरा, वेश्यासेवन, भालेट, चोरी और परस्त्रोसेवन इन सात व्यसनों का त्याग करना भी उसके प्राथमिक कर्तव्यों में से है । अन्य अभक्ष्य पदार्थों का सेवन भी गृहस्थ के लिए वर्जित है।
____ अनगार मुनि को कहते हैं । यह गृह का परित्याग कर वन में या अन्य एकान्त स्थानों में रहते हैं। पांच पापों का त्याग कर अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करते हैं । नग्न-दिगम्बर रहते हैं । दिन में एक बार ही आहार ग्रहण करते हैं । मोक्ष तत्त्व
____ संवर और निर्जरापूर्वक समस्त फर्म-परमाणुओं का आत्मा से सदा के लिए पथक हो जाना मोक्ष वत्त्व है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की एकता से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिन जीवों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है वे सदा के लिए जन्म-मरण के चक्र से बच जाते है।
इस प्रकार धर्म का उपदेश देकर धर्मनाथ जिनेन्द्र ने संसारस्थ जीवों को कल्याण का मार्ग प्रदर्शित किया । इनके ४२ गणधर थे । विहार काल में हजारों मुनि, गायिकाएँ तथा लाखों श्रावक-श्राविकाओं का विशाल संघ साथ रहता था ।
साड़े बारह लाख वर्ष की आयु समाप्त होने पर इन्होंने चैत्र शुक्ल चतुर्थी की पुण्मवेला में सम्मेदशिखर ( पारसनाथ हिल ) से मोक्ष प्राप्त किया था। धर्मशमियुष्य का यह जैन-सिद्धान्त-वर्णन, वीरनन्दी के चन्द्रप्रभचरित तथा उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र पर आधारित जान पड़ता है ।
सिखान्त
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