Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan
Author(s): Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 215
________________ न रहते और न मुनि भवस्था में बम और की फांका कार मधर्माचार्य से प्रकार करते।' 'यह वर्णन मात्र कवि-सम्प्रदाय के अनुसार नहीं है किन्तु यथार्थ रूप में है। क्योंकि फषि-सम्प्रदाय के अनुसार तो किसी भी वृक्ष का वर्णन हो सकता था पर अन्य वृक्षों का वर्णन न कर प्रमुख रूप से सुपारी के ही वृक्षों का वर्णन किया है। मिथिला के राजा गोविन्द महाराज की बहन विजया का विवाह दूरवर्ती राजा सत्यन्धर के साथ होना असम्भय बात नहीं है, क्योंकि जब विद्याधरों के साथ भी सम्बन्ध हो सकते है तब उत्तर और दक्षिण भारत की कोई बड़ी पूरी नहीं है। यही बात दक्षिण से जीवन्धर की विपुलाचल तक पहुंचने की है। जो कुछ भी हो विदद्गण विचार करें । दुख इस बात का है कि हम मात्र २५०० वर्ष पूर्ववर्ती देश और नगर का पता लगाने में भी समर्थ नहीं हो सक रहे है । सुदर्शन या जीवन्धरकुमार को अपने निवास स्थान चन्द्रोदय पर्वत पर ले गया है और वहाँ से उतरकर उन्होंने पल्लव आदि देशों में परिभ्रमण किया है, इससे पता चलता है कि चन्द्रोदय पर्वत दूर नहीं है। क्या यह सम्भव नहीं है कि दक्षिण का चन्द्रगिरि ही चन्द्रोदय हो, सुदर्शन यक्ष यन्तरदेव है, व्यन्तरों का निवास जहाँ कहीं भी होता है और उनकी इच्छानुसार मनुष्यों की दृष्टि के भगोचर भी रह सकता है। जीवन्धर कुमार के बिहारस्थलों में से क्षेमपुरी के विषय में भी पं. के. भुजबली शास्त्री ने अपने एक लेख में प्रकट किया है कि यह वर्तमान बम्बई ( महाराष्ट्र ) प्रान्तान्तर्गत उत्तर कन्नड जिला का गेरुसोप्पे ही प्राचीन क्षेमपुरी या क्षेमपुर था। गैससोप्पे का दूसरा नाम भल्लातकीपुर है । यह होनावर से पूर्व अठारह मील दूर पर अवस्थित है। जो भी हो, शास्त्रीजी दक्षिण प्रान्त के है और वहां के स्थानों से अत्यन्त परिचित है। टीकाएं और टिप्पण धर्मशर्माभ्युदय और जीवघरचम्मू के इस अनुशीलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि महाकवि हरिवन्द्र एक उच्चकोटि के कवि हैं। उनके उपर्युक्त दोनों नन्थ संस्कृतसाहित्य के गौरव को बढ़ानेवाले हैं। इन अन्यों में अलंकार, रस, ध्वनि, गुण और रोति के जैसे निदर्शन उपलब्ध है वैसे अन्यत्र कम मिलते हैं। दोनों ग्रन्थों के नायक घोरोदात्त हैं। इनका परित्र-चित्रण कवि ने इतनी सावधानी से किया है कि उनके जोवन की पवित्रता पद-पद पर प्रकट होती है । ___इनमें धर्मशर्माभ्युदय का प्रचार अत्यधिक रहा है। यही कारण है कि इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ उत्तर और दक्षिण के अनेक शास्त्र-भाण्डारों में संगृहीत हैं जबकि र, नानाभंगपयोधिमग्नपतयो देरासदूरोज्झिता वा न प्रभवन्ति दुःसहलगो वोलु मुनीनो धुरम् । इत्याहुः परमागमस्य परमो कायामधिष्ठास्नन ___ सहदेवो मुनिष मैच कल्पच रश्येत कस्मादपि । --गचिन्तामणि २०४ महाकवि हरिश्चन्द्र : एक अनुशीलन

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