Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan
Author(s): Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 213
________________ :।।' पीली धर्मायुदय का रत्नपुर 14 लाखों वर्ष पूर्व हुए धर्मनाथ का जन्मऩगर रत्नपुर था पर धान वह कहाँ है, उसका वर्तमान नाम क्या है ? इसका कुछ निर्णय नहीं है। फिर भी उनके जीवन-वृत्त से यह अनुमान लगाया जा सकता है – रत्नपुरनगर पाटलिपुत्र पटना के समीपवर्ती होगा। क्योंकि तीर्थकर धर्मनाथ से उल्कापात देख संसार से विरक्त हो मात्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन देवरी दो ग्रहण की थी। दीक्षा धारण करते समय उन्होंने ठोस अर्थात् हो दिन का उपवास लिया था उसके बाद उनका पाटलिपुत्र ( पटना ) के राजा धन्यसेन. के घर प्रथम आहार हुआ या इससे प्रतीत होता है कि उनके दीक्षा-स्थान और पाटलिपुत्र के बीच विशेष अन्तर नहीं था । .. स्तम्भ ५ : भौगोलिक निर्देश और उपसंहार 1 5 "ठु !i: 1:12 PARE सक्षिस Ge " इसके अतिरिक्त दूसरी बात यह है कि युवराज अवस्था में उन्होंने श्रृंगारवती के स्वयंवर में जाने के लिए जब विदर्भ देश के लिए प्रयाण किया तो उन्हें मार्ग में गंगा नदी मिली ! कवि ने नवम् स्रुर्ग के ६८ से ७६ तक के श्लोकों में गंगा का मनोहर वर्णन क्रिया है। गंगा की काष्ठ की नौका से पार कर वे विन्ध्याटवी में प्रविष्ट हुए तथा विन्ध्याचल पर उन्होंने निवास किया | साधु होने पर उपस्थ अवस्था में उन्होंने एक वर्ष तक बिहार करने के बाद पुनः दीक्षावन में प्रवेश किया और सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे ध्यानारूद होकर केवल ज्ञान प्राप्त किया। उनका यह दीक्षावन पाटलिपुत्र के समीप ही था । क्योंकि दीक्षायन, निर्वासस्थान के समीप ही रहता है दूर नहीं। Y जीवन्धर का हेममिव देश और उनका भ्रमण क्षेत्र इस स्तम्भ में रूम हेसोगद देश, राजपुरी नगरी, चन्द्रोदय पर्वत तथा दक्षिण के उन देशों का आधुनिक नामों के साथ परिचय देना चाहते थे जिनमें जीवम्बर कुमार ने भ्रमण किया था परन्तु सहायक साम के अभाव में पूर्ण निर्णय नहीं हो सकने से ता है। फिर भी इस दिशा में विद्वानों ने जो अब तक प्रयत्न किया है उसकी जानकारी देना उचित समझते हैं । २०१ 3 सर्वप्रथम कनिघम साहब ने 'एसिएट जागरको ऑफ़ इण्डिया' में हेमागर्द देश पर प्रकाश डालते हुए उसे मैसूर या उसका निकटवर्ती भूभाग ही हेमांनद देश बतलाया 14 ९. चोकर को दीक्षा लेने के बाद जबतक केवल ज्ञानपूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तक का उनका काल प्रस्थकाल कहलाता है महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन

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